1960 -1970 के दशकों में हिंदुस्तान में केंद्र सरकार ने बहुत अधिक टैक्स लगाया हुआ था जिससे आम लोग , विशेषकर उधमी व्यापारी वर्ग परेशान रहता था। कुछ मामलों में तो इनकम टैक्स 90 % तक था। अर्थात , यदि आपने 100 रूपये कमाए तो उस समय की केंद्र सरकार आपसे 90 रूपये इनकम टैक्स के रूप में वसूल कर लेती थी। आज यदि भाजपा सरकार आपको अपनी आय का 90 % धन इनकम टैक्स के रूप में अदा करने को कहे तो आप भड़क कर भाजपा को समर्थन देना तुरंत बंद कर देंगे और इनकम टैक्स नहीं भरेंगें।
1960 -1970 के दशकों में त्रस्त उधमी व्यापारी वर्ग 90 % इनकम टैक्स न भर कर उसे केंद्र सरकार से छिपा कर रखता था। तत्कालीन केंद्र सरकार छापे डाल कर उस छुपाये गए 90 % धन को वसूलने की कोशिश में लगी रहती थी और उस 90 % छुपाये धन को काला धन कहती थी।
अर्थात जिसे तत्कालीन सरकार काला धन मानती थी उसे तत्कालीन मेहनतकश आम लोग और उधमी व्यापारी वर्ग अपने खून पसीने की गाढ़ी सफेद कमाई मानता था। अर्थात मुख्य सवाल यह था - बादशाह को जनता से कितना टैक्स वसूलना चाहिए , जनता कितने टैक्स को सही जायज़ मानती है और कितना टैक्स बादशाह को देने के लिए तैयार है। आज भी वर्ष 2016 में वही पुराना सवाल हवा में तैर रहा है - बादशाह को जनता से कितना टैक्स वसूलना चाहिए , जनता कितने टैक्स को सही जायज़ मानती है और कितना टैक्स बादशाह को देने के लिए तैयार है। इसलिये आज जब भाजपा सरकार तथाकथित काला धन निकालने की बात दोहराती है तो आज के नौजवानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि करोडों मेहनतकश आम लोग और उधमी व्यापारी वर्ग अपने खून पसीने की गाढ़ी सफेद कमाई में से कितना धन इनकम टैक्स और अन्य प्रकार के टैक्स के रूप में देने को तैयार है या तैयार नहीं है।
अर्थात काला धन किसे कहते हैं - इस के बारे में लोगों की अपनी अपनी अलग अलग सोच है।
125 करोड़ आम जनता की तरह स्वामी मूर्खानंद जी मानते हैं कि औरों का खून चूस कर कमाया गया धन ही असल में काला धन है , रिश्वतख़ोरी से कमाया गया धन ही असल में काला धन है, सरकारी धन में से सरकारी अधिकारियों और नेताओं द्वारा चुराया गया धन ही असल में काला धन है.... !
जिस अपने खून पसीने की गाढ़ी सफेद कमाई के धन को करोडों मेहनतकश आम लोग और उधमी व्यापारी वर्ग ने बादशाह के द्वारा लगाए गये टैक्स की रकम से असहमत हो बादशाह से छुपा कर रखा है उस धन को स्वामी मूर्खानंद जी काला धन बिलकुल भी नहीं मानते हैं।
भाजपा केंद्र सरकार ने जो काला धन वसूलने की मुहीम चलाई हुई है , वह मुहीम गलत है या सही - इसके बारे में उस काला धन की स्वामी मूर्खानंद जी की इसी परिभाषा (DEFINITION) को आधार बनाया जाना चाहिये। साथ ही भाजपा की केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि भाजपा पार्टी अपने स्वयं के नेताओं के पास मौजूद अपार काले धन और अपनी स्वयं की पार्टी के ख़जाने में आये काले धन का भी पूरा विवरण DEATAILS हिंदुस्तान की 125 करोड़ जनता को तुरंत दे।
- स्वामी मूर्खानंद जी
1960 -1970 के दशकों में त्रस्त उधमी व्यापारी वर्ग 90 % इनकम टैक्स न भर कर उसे केंद्र सरकार से छिपा कर रखता था। तत्कालीन केंद्र सरकार छापे डाल कर उस छुपाये गए 90 % धन को वसूलने की कोशिश में लगी रहती थी और उस 90 % छुपाये धन को काला धन कहती थी।
अर्थात जिसे तत्कालीन सरकार काला धन मानती थी उसे तत्कालीन मेहनतकश आम लोग और उधमी व्यापारी वर्ग अपने खून पसीने की गाढ़ी सफेद कमाई मानता था। अर्थात मुख्य सवाल यह था - बादशाह को जनता से कितना टैक्स वसूलना चाहिए , जनता कितने टैक्स को सही जायज़ मानती है और कितना टैक्स बादशाह को देने के लिए तैयार है। आज भी वर्ष 2016 में वही पुराना सवाल हवा में तैर रहा है - बादशाह को जनता से कितना टैक्स वसूलना चाहिए , जनता कितने टैक्स को सही जायज़ मानती है और कितना टैक्स बादशाह को देने के लिए तैयार है। इसलिये आज जब भाजपा सरकार तथाकथित काला धन निकालने की बात दोहराती है तो आज के नौजवानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि करोडों मेहनतकश आम लोग और उधमी व्यापारी वर्ग अपने खून पसीने की गाढ़ी सफेद कमाई में से कितना धन इनकम टैक्स और अन्य प्रकार के टैक्स के रूप में देने को तैयार है या तैयार नहीं है।
भाजपा केंद्र सरकार ने जो काला धन वसूलने की मुहीम चलाई हुई है , वह मुहीम गलत है या सही - इसके बारे में उस काला धन की स्वामी मूर्खानंद जी की इसी परिभाषा (DEFINITION) को आधार बनाया जाना चाहिये। साथ ही भाजपा की केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि भाजपा पार्टी अपने स्वयं के नेताओं के पास मौजूद अपार काले धन और अपनी स्वयं की पार्टी के ख़जाने में आये काले धन का भी पूरा विवरण DEATAILS हिंदुस्तान की 125 करोड़ जनता को तुरंत दे।
- स्वामी मूर्खानंद जी