Wednesday, April 27, 2022

तन मन धन के रोगों के निवारण के लिए वेदों के अति गोपनीय मंत्र

हरियाणा के भिवानी हांसी क्षेत्र में देवी देवताओं के कुछ नौजवान नए नए भगत आजकल यह प्रचार कर रहें हैं कि केवल उन्हें ही दुर्गा सप्तश्ती और वेदों में विद्यमान एक विशेष गोपनीय मन्त्र की जानकारी है, जगत में किसी अन्य को इसकी जानकारी नहीं है. उनका यह दावा सरासर गलत है. 

(१) दुर्गा सप्तश्ती में विद्यमान इस गुप्त मन्त्र की जानकारी लाखों भक्तों को हैं, विशेषकर जो शिव जी और सिद्धों की संजीवनी विद्या, शाम्भवी विद्या का अभ्यास करते हैं या सिद्धि प्राप्त करते हैं. 
गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित "दुर्गा सप्तश्ती" में पृष्ठ ४७ पर विद्यमान यह गुप्त मन्त्र नीचे दिया जा रहा है जो किसी सिद्ध गुरु से दीक्षा लेने पर सुगमता से सिद्ध हो जाता है: 
"ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं 
ह स क ह ल ह्रीं 
स क ल ह्रीं"
(२) दूसरा मन्त्र इस प्रकार है:
पूरा मंत्र: "ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दुं दुर्गति नाशिन्यै महामायै स्वाहा"
कुछ भगत अपने चेलों को केवल आधा ही मंत्र दे रहे हैं, जैसे:
"ऊँ दुं दुर्गा दुर्गति नाशिन्यै महामायै स्वाहा"
(टिप्पणी: मन्त्र पूरा ही देना चाहिए।) 

- डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी
Dr Swaamee Aprtemaanandaa Jee


( Dr Swaamee Aprtemaanandaa Jee's Yoga-Secrets-Revealed Series - 84)

Main References


Monday, March 28, 2022

परम ब्रह्म" के तीन स्तर हैं

गीता अध्याय 4 श्लोक 32 के अनुवाद में सर्व अनुवादकों ने कोई गलती नहीं की है। ‘‘ब्रह्मणः’’ शब्द का अर्थ "वेद" कर रखा है, जो कि सही अर्थ है। ‘‘ब्रह्मणः मुखे’’ का अर्थ "वेद की वाणी" में किया है, जो कि सही है। "परम ब्रह्म" के तीन स्तर हैं: 

(1) परम (पूर्ण) अक्षर ब्रह्म

(2) अक्षर ब्रह्म 

(3) क्षर ब्रह्म। 

"परम ब्रह्म" ने ही "क्षर ब्रह्म" बन कर चार "वेद" दिए।

(क्षर) ब्रह्म के मुख से ही "वेद" (वाणी/ज्ञान) आए। उन्हीं अनुवादकों ने गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में ‘‘ब्रह्मणः’’ का अर्थ "सच्चिदानन्द घन ब्रह्म" किया है जो कि उचित नहीं है। इसलिए गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी ‘‘ब्रह्मणः’’ का अर्थ "सच्चिदानन्द घन ब्रह्म" अर्थात् "परम अक्षर ब्रह्म" न कर के "क्षर ब्रह्म" करना ही उचित है।

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता अर्थात "क्षर ब्रह्म" ने कहा है कि उस (परम) "ज्ञान" (प्रकाश/परम ज्योत) को (जो क्षर ब्रह्म अपने मुख-कमल से संकेतों से बोलकर सुनाता है, जिस तत्त्वज्ञान का संकेत करता है उसको) तू तत्त्वदर्शी सन्तों के पास जाकर समझ। उनको दण्डवत प्रणाम करने से, कपट छोड़कर नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से तत्त्वदर्शी सन्त तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।

इससे यह भी सिद्ध हुआ कि गीता वाला ज्ञान पूर्ण नहीं है, परन्तु गलत भी नहीं है। अर्थात, गीता में "परम ज्ञान" के बारे में केवल संकेत दिया गया है। गीता ज्ञानदाता को, अर्थात "क्षर ब्रह्म" को भी "पूर्ण" मोक्षमार्ग का (परम) "ज्ञान" नहीं है क्योंकि तत्त्वज्ञान की जानकारी गीता ज्ञानदाता को, अर्थात "क्षर ब्रह्म" को भी नहीं है जो परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) ने अपने मुख से बोला होता है। उसको तत्त्वदर्शी सन्तों से जानने के लिए कहा है।

Sunday, February 20, 2022

यह दुनिया बड़ी अजीब है

यह दुनिया बड़ी अजीब है। आप कुछ भी अच्छा काम करने निकलेंगे तो उसमें भी कुछ न कुछ बुराई, कुछ न कुछ कमी निकाल ही देगी।

लगभग हर किसी को अपनी पड़ी है। आपाधापी मची है।

शायद ही कोई बिना मतलब के आपकी मदद करने को आगे आए। ज्यादातर लोग किसी की मदद करने से पहले इस बात का हिसाब लगाते हैं कि इस काम को करने से बदले में अपना खुद का कितना फायदा होने वाला है। फायदा होता नजर नहीं आए तो वे मदद ही नहीं देंगे चाहे मदद मांगने वाला मर ही क्यों न रहा हो।

ऐसे ही जब आप खुद ही अपनी खुद की मदद करने के लिए अपने सामान को, अपनी दुकान के माल को बेचने के लिए अपने माल की अच्छाई का ढिंढोरा पीटना शुरु करते हैं तो कुछ लोग अनजाने में और कुछ लोग आपसे चिड कर या आपको नीचा दिखाने के लिए शोर मचाना शुरू कर देते हैं - "देखो रे देखो, यह अपना गुणगान खुद ही कर रहा है। यह अपनी बड़ाई खुद ही कर रहा है। यह शख्स अच्छा नहीं। यह दुनिया के मालिक की भक्ति करने लायक नहीं...!"

दोस्तों, दुनिया का यही दस्तूर है। इसलिए नजरअंदाज कर दीजिए कि दुनिया वाले आपके बारे में क्या कहते हैं। अगर वे आपकी बुराई कर रहे हैं तो समझ लीजिए कि वे अपने खुद के दिल में दफन बुराई को ही आपके बहाने खोद कर खुद के जहन को ही जहरीला बना रहे हैं।

आप अपना काम करते रहिए। हक हलाल से रोजी रोटी कमाते रहिए, अपने तजुर्बे और इल्म को ओरों की भलाई के वास्ते शेयर करते रहिए। चाहे इस नेकी के काम के लिए आपको खुद ही अपने ढोल क्यों न पीटने पड़ें, खुद ही क्यों न अपने अच्छे काम के बारे में लोगों को बताना पड़े। 

अरे, भई! जब लोगों को आपके उत्पाद, माल या ज्ञान के बारे में पता ही नहीं चलेगा तो समाज कैसे आपके उत्पाद, माल या ज्ञान से फायदा उठाएगा?

हां! एक बात का ख्याल जरूर रखिएगा। अपने उत्पाद, माल या ज्ञान का ढोल पीटते वक्त अपने दिमाग में घमंड को घुसने न दीजिए। केवल यही सोचिए कि आप केवल एक जरिया हैं, एक ऐसा जरिया जिसके जरिए इस दुनिया का मालिक खुद ही कुछ काम कर रहा है। जब मालिक खुद ही आपसे काम करवा रहा है इंसानियत की भलाई के लिए तो उसमें घमंड करने की कोई गुंजाइश ही नहीं, भौंकने वाले कुत्तों से डर कर अपने काम को रोकने की भी जरूरत नहीं।

जितना हो सके समाज की, इंसानियत की सेवा कीजिए - अपने नेक कामों से, अपने नेक ज्ञान से।

डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी

Saturday, February 12, 2022

तुलसी पौधे के बारे में प्रामाणिक आयुर्वेदिक औषधीय जानकारी

तुलसी पौधे के बारे में प्रामाणिक आयुर्वेदिक औषधीय जानकारी:

(1) तुलसी के पत्ते को निगलना चाहिए। इसे दांतों में नहीं चबाना चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद पारा [mercury] दंतशूल यानी दांतों में दर्द पैदा करता है।

(2) तुलसी का पौधा अपने चारों तरफ 200 गज (600 फीट/180 मीटर) के दायरे में बिजली फैलाता है जिससे वज्रपात नहीं होता है।

(3) तुलसी को लगाने का सही समय भारत में जून, जुलाई और अगस्त के महीने होते हैं।

(4) इसकी लकड़ी की माला पहनने से संक्रामक महामारी का भय दूर हो जाता है।

(5) उबाली हुई चाय की पत्ती को धोकर इसकी बढ़ोतरी के लिए खाद के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।

(6) कंडों की राख को इसकी पत्तियों पर छिड़कने से इसकी पत्तियों के कीड़े मर जाते हैं।

(7) तुलसी की पत्तियों को रोजाना सुबह सुबह खाली पेट निगलने से मोटे मनुष्य का वजन कम हो जाता है और पतले मनुष्य का वजन बढ़ जाता है।

(8) तुलसी की पत्तियों के सेवन से कैंसर, टीबी, इंफलुएंजा आदि भयंकर रोग भी ठीक हो जाते हैं।

(9) तुलसी की पत्तियों के सेवन से कोविड महामारी से भी सुरक्षा होती है।

(10) जिस घर में तुलसी है वहाँ नकारात्मक (negative) ऊर्जा नहीं रहती।

मित्रों, इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग तुलसी से फायदा ले स्वस्थ रहें!

- डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी